चेले और शागिर्द

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

राजनीति [भाग-तीन]


मेल की आखिरी चार लाइन साहिल ने दस बार पढ़ी और विंडो को शट डाउन कर दिया .साहिल ने एक निगाह मेज पर पड़े जनता के प्रार्थना पत्रों पर डाली और फिर ऊपर छत के पंखे पर .' हिलेरी जैसी फ्रेंड साहिल के लिए और कोई नहीं हो सकती ' ये वो पिछले बीस साल से जानता है पर जब राजनीति या फ्रेंड चुनने की बात आई तब साहिल ने राजनीति को चुना .साहिल अच्छी तरह जानता था कि राजनीति में आने के निर्णय से हिलेरी के साथ उसकी फ्रेंडशिप टूट जायेगी पर राजनीति ही वो जगह है जिसमे सक्रिय होकर वो अपने डैडी को ज़िंदा महसूस कर पाता है . दादी की हत्या के बाद सहमे हुए माँ ,साहिल और प्रिया को डैडी ने ही फिर से हँसना सिखाया था .कितना घबरा गया था साहिल एक बार लॉन में खेलती हुई प्रिया की ओर राइफल लेकर जाते हुए सिक्योरिटी पर्सन को देखकर .साहिल चिल्लाता हुआ दौड़ा था उस ओर -'' डोंट किल माई सिस्टर !!!'' डैडी भी चौदह वर्षीय किशोर साहिल की चीख सुनकर अपने रूम से दौड़कर वहाँ पहुँच गए थे और आँखों ही आँखों में सिक्योरिटी पर्सन को वहाँ से जाने का इशारा किया था .साहिल डैडी से लिपट कर बहुत देर तक रोता रहा था .एक हादसा बच्चे के दिमाग पर कितना गहरा प्रभाव छोड़ जाता है ये डैडी अच्छी तरह जानते थे . साहिल व् प्रिया की पांच साल तक शिक्षा घर पर ही हुई क्योंकि साहिल के पूरे परिवार को मार डालने की धमकियाँ रोज़ आतंकवादी संगठनों की ओर से रोज़ दी जा रही थी .पांच साल बाद साहिल को विदेश पढ़ने भेज दिया गया .इसी दौरान उसकी दोस्ती हिलेरी से हुई .कॉलेज कैम्पस में एक दिन मस्ती करते हुए सब दोस्तों के साथ साहिल ये योजना बना ही रहा था कि इस बार भारत लौटने पर डैडी के साथ क्या-क्या शेयर करेगा ,उन्हें यहाँ के बारे में ये बतायेगा ...वो बतायेगा ...'' तभी अचानक सुरक्षा कारणों से साहिल को तुरंत अति सुरक्षित जगह पर ले जाया गया और वहाँ वार्डन सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे स्वर में कहा -'' योर फादर इज मोर .....उनकी हत्या कर दी गयी है .'' इक्कीस वर्षीय साहिल के दिल को चीरते हुए निकल गए थे ये शब्द .उसके मुंह से बस इतना निकला था -'' इज दिस ट्रू ? '' और वार्डन सरके ''यस'' कहते ही उसकी आँखों के सामने डैडी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया था और कान में उनके अंतिम शब्द '' कम सून ...'' साथ ही दिखाई दिया था माँ का चेहरा और साहिल ने तुरंत माँ से बात कराये जाने का आग्रह किया था .फोन पर संपर्क सधते ही साहिल माँ से बस इतना कह पाया था -'' माँ मैं आ रहा हूँ ...टूटना मत .'' जबकि साहिल खुद टूट कर चूर चूर हो गया था .जिन संस्मरणों को डैडी के साथ शेयर करने की प्लानिंग कुछ देर पहले वो कर रहा था उनके चीथड़े चीथड़े उड गए थे बिलकुल डैडी के बम विस्फोट में उड़े शरीर की तरह .साहिल की सिक्योरिटी इतनी कड़ी कर दी गयी थी कि हिलेरी भी ऐसे वक्त में उससे मिल नहीं पाई थी .विशेष विमान से साहिल को भारत लाया गया था और एयर पोर्ट पर खड़ी प्रिया साहिल को देखते ही उसकी ओर दौड़कर जाकर लिपट गयी थी उससे .घंटों से आँखों में रोके हुए अपने आंसुओं के सैलाब को रोक नहीं पायी थी वो .प्रिया की आँखों में आंसूं देखकर साहिल के दिल में दर्द की लहर दौड़ पड़ी थी पर उसने बड़े भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए प्रिया को सम्भाला था .साहिल को इस वक्त केवल माँ की चिंता थी .उस माँ की जो उसके डैडी के लिए अपना घर ,देश ,संस्कृति छोड़कर भारतीयता के रंग में रंग गयी थी .जिसने अच्छी बहू ,अच्छी पत्नी व् अच्छी माँ होने की परीक्षाएं उत्तम अंकों में पास की थी .जो डैडी के हल्का सा बुखार होने पर सारी रात जगती रहती थी ...वो माँ डैडी के बिना कैसे रह पायेगी ? यही एक प्रश्न साहिल के दिल व् दिमाग में उथल-पुथल मचाये हुए था .
[जारी है ...]
शिखा कौशिक 'नूतन'
[घोषणा- -ये कहानी ,इसके पात्र सभी काल्पनिक हैं इनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है .]

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