चेले और शागिर्द

रविवार, 23 मार्च 2014

हमेशा काटते शागिर्द ही उस्ताद की गर्दन !




सियासत को अगर समझो जुबानें बंद रहने दो !
खिलाफत मत करो समझो जुबानें बंद रहने दो !
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बड़ी मक्कारियाँ कर के हवा अपनी बनाई है ,
बनो नादान मत यारों जुबानें बंद रहने दो !
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मिला जो तख़्त तुमको भी नवाजेंगे ईनामों से ,
हमारी चाल चलने दो जुबानें बंद रहने दो
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खफा होना है हो जाओ झुकेंगे हम नहीं हरगिज़ ,
इशारों को समझ जाओ जुबानें बंद रहने दो !
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हमेशा काटते शागिर्द ही उस्ताद की गर्दन ,
ये 'नूतन' सबको बतलाओ जुबानें बंद रहनें दो !

शिखा कौशिक 'नूतन'